Khushi jha

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समाज और हम

समाज और हम
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बहुत बुरा लगता है उस शब्द का सुनना,
फिर नीच लोग क्यूं कैसे कर लेते हैं काम ये घिनौना।
क्यूं नहीं दर्द होता उस दरिंदें को,
क्यूं  काट देते हैं उडते हुए पंछी के पर को।
एक दर्द एक आह जो निकलती है,
एक आग एक तड़प जो उठती है,
क्यूं नहीं उस को भी मेहसूस होती है।
एक माँ एक बहन एक बेटी की रक्षा करना धर्म हीं नहीं कर्तव्य भी है,
क्या कहूँ कैसे कहूँ ये सब कुछ होता समाज के समक्ष है।
कुछ तो शर्म करनी चाहिए 
ना हो शर्म तो डूब मरना चाहिए।
कब तलक ये समाज चुप रहेगा,
और कितने दरिंदें कुकर्म करेगा।
एक आवाज उठानी होगी,
बेटी बचाओ देश में अभियान चलानी होगी।
बेपरवाह ये समाज कब क्या बोला है,
क्या एक बेटी के दर्द से ये समाज कभी डोला है।
अपने अंदर के हैवान को निकालो,
अच्छी सोच से अच्छा समाज बना लो।
कल भी हुआ था,आज भी हुआ,
कल ना हो ऐसे कुकर्म ऐसा मन में ठान लो।
ऐसे शब्द बोलने को भी शर्म आती है,
जाने कैसे हर दिन एक बच्ची एक बेटी बली चढ़ जाती है।
इसका दोषी हम नहीं समाज नहीं तो कौन है?
समाज में फैल रहे गन्दगी का जिम्मेदार कौन है?
हम बेटी बहन को हीं आगे आना होगा,
ना बचाए कोई लाज तो खुद दुर्गा बन जाना होगा।
एक बार नहीं सौ बार विचार करना,
बेशर्म की जिन्दगी जीने से अच्छा है डूब मरना।
मुझसे ना लिखा जाये अब और आगे,
बस इतना हीं कहूँ ना टूटने दो बेटियों के अनमोल धागे,
ओ समाज वाले उजड़ते देश को बचा लो आके आगे।



जय हिन्द जय भारत।

Khushi jha.

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10 Comments

sunanda

03-Feb-2023 08:27 PM

very nice

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Abhilasha sahay

16-Dec-2021 04:40 PM

Very nice 👌

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Priyanka Rani

15-Dec-2021 07:07 PM

Nice

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